maharaj ranjit singh history part – 4 | कोहेनूर हीरा

Spread the love

नमसकर दोस्तो स्वागत आप सब का से ,maharaj ranjit singh history part – 4 मे | दोस्तों जैसे की हमने पिछले भाग मे आपको बताया था की किस्तरहा डोगरो ने माहाराजा रणजीत सिंघ काज्यादातर खजाना हिन्दू मंदिरो को दान मे दे दीया |आज हम आप को बताएँगे की किस तरहा से महाराजा रणजीत सिंघ ने अटक पर कब्जा कीया और कैसे कोहेनूर हीरा महाराजा रणजीत सिंघ को मिला | 

maharaj ranjit singh history part – 4 | अटक पर कब्ज़ा 

 13 जुलाई 1813 को अटक से 5 मील दूर गांव हैद्रू के बाहर दरिया किनारे काबुल के शासक दोस्त मुहम्मद खान की सेना और कंवर पिशौरा सिंह और मोहकम चंद के नेतृत्व वाली लाहौर दरबार की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ।

 

 इस युद्ध के दौरान जसवंत सिंह ने दोस्त मुहम्मद खान पर हमला कर दिया, हमले के दौरान दोस्त मुहमद खान घोड़े से नीचे गिर गया ।  

 उसकी सेना ने उसे मरा हुआ समझ लिया और भाग गई, लेकिन वह मरा नहीं था |

 और वह केवल घायल हुआ था, इसलिए वह भागती हुई सेना में छिपकर वहा से भाग गया।  उसके भागने के बाद अटक के इस किले पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्ज़ा हो गया 

 

 रणजीत सिंह को कोहिनूर हीरा कैसे मिला

maharaja-ranjit-singh-history-part-4

 अफगानिस्तान के सम्राट शाह सुजाह को मुगलो ने हरादीया और उसके किले पर कब्जा कर लिया और उसको बंदी बनाकर उसीके किले मे कैद कर दीया उसके बाद शाह सुजाह की बेगम ने रणजीत सिंह को एक प्रस्ताव भेजा था कि यदि वह उनके पति को कैद से मुक्त करा देंगे और महफूज उन को उन्हें सौंप दें तो वह उन्हें दुनिया का सबसे नायाब हीरा ‘कोहिनूर’ देंगी।  रणजीत सिंह ने अपना वादा पूरा किया और शाह शुजाह को छुड़ाकर लाहौर ले आये और उन्हें शाही कैदी की तरहा रखा |

 इस उद्देश्य के लिए कई सिख सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी।  लेकिन जब शाहसूजा लाहौर पहुंचे तो बेगम ने हीरा देने के बजाय बहाने बनाने शुरू कर दिए,की उन्होंने हीरा किसीके पासअमानत में रख दिया है।

 लेकिन जब रणजीत सिंह ने उन पर कठोर व्यवहार करना शुरू कर दिया और रणजीत सिंघ ने शाहसुजा की पत्नी को  एक कमरे में कैद कर दिया, तो उन्होंने अपने हथियार डाल दिए और जून 1813 के पहले दिन कोहेनूर हीरा माहाराजा रणजीत सिंघ को  भेंट कर दिया।गया  हीरा लेने के लिए रणजीत सिंह स्वयं उसके घर गए थे |

 

 रणजीत सिंघ डोगरो और ब्राह्मणो की चापलूसी और उनकी औरतो के इलावा शराब का गुलाम हो गया तब अकाली फूला सिंघ बहुत मायूस होगया डोगरे और ब्राह्मण रणजीत सिंघ को शराब और औरतो की कामवासना मे इतना मस्त करके रखते थे |

 

 इसी वजहा से रणजीत सिंघ अकाली फूला सिंघ के साथ साथ और सिक्ख जरनेलो की परवाह भी नहीं करता था रणजीत सिंघ अब जो भी काम करता था वह ब्राह्मणो और डोगरो की मर्जी से करता था |

 

 1814 में रणजीत सिंह के दरबार में गैर-सिखों का कब्ज़ा देखकर अकाली फूला सिंह अमृतसर छोड़कर आनंदपुर चले गये।

इन्ही दीनो मे जींद का राजा प्रताप सिंघ अंग्रेजो से झगड़ा करके अकाली फूला सिंघ की शरण मे आनंदपुर साहिब आ गया |

जब अंग्रेजो को इस बात की सूचना मिली की राजा प्रताप सिंघ अकाली फूला सिंघ की शरण मे आनंदपुर साहिब चला गया है |

तब अंग्रेजो ने अकाली फूला सिंघ से कहा की वह राजा प्रताप सिंघ को उनके हवाले करदे परन्तु अकाली फूला सिंघ ने राजा प्रताप सिंघ को अंग्रेजो के हवाले करने से मना करदिया |

अकाली फूला के मना करने के बाद अंग्रेजो ने पटियाला, मलेरकोटला और और फ़ौज को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिये भेज दीया था |

परन्तु जब सिक्ख फौज को पता चला की उन्हें अकाली फूला सिंघ की गिरफ़्तारी के लिये आनंदपुर साहिब के ऊपर हमला करना पड़े गा तब उन्होंने हमला करने से इंकार कर दिया |

सिक्ख फौज के मना करने के बाद अंग्रेजो ने साहिब सिंघ बेदी के पुत्र को बिचोला बनाकर भेजा और राजा प्रताप सिंघ से समझौता कर लिया |

 

अब रणजीत सिंघ ने भी अकाली फूला सिंघ को भी लाहौर वापिस बुला लियाइस के बाबजूद भी रणजीत सिंघ ने अपने तोर तरिके नहीं बदले |

शराब और औरतो मे मस्त करके ब्राह्मण, डोगरे, और पहाड़िये रणजीत सिंघ के ऊपर अपनी पकड़ मजबूत करते गये |

मृत्यु के समय तक रणजीत सिंघ की 20, रानियाँ और दर्जनों रखेले थी रणजीत सिंघ ने सरदार, पहाड़ी राजाओं, और जागीर दारों की लड़किया ही नहीं बल्की दो वेश्या भी अपनी रखेल बनाकर रखी हुई थी|

 1837 में जरनेल हरि सिंह नलवा ने रणजीत सिंह से कहा कि उन्हें यह राज्य सिखों के बलिदान के कारण प्राप्त हुआ है |

 

और उन्हें वसीयत बनाकर इसे सिख परिषद को सौंपने का निर्देश दिया जाना चाहिए।  कनिंघम नलवा की ‘सच्चाई’ की ओर भी इशारा करता है कि वह (नलवा) रणजीत सिंह के बेटों में से केवल एक को सिख साम्राज्य का अगला राजा बनाने के खिलाफ था |

 

 (कनिंघम, पृष्ठ 173)।  जब डोगराओं ने यह सुना, तो उन्होंने रणजीत सिंह को समझाया कि यह उनका निजी राज्य है सिखों का नहीं,

 

 और इसलिए उनका वारिस (बड़ा बेटा) इसका उत्तराधिकारी होगा।  इसके कुछ दिन बाद डोगराओं ने साजिश रचकर हरि सिंह नलवा की हत्या कर दी.

 

  इससे पहले अकाली फूला सिंह को भी डोगराओं ने एक साजिश के तहत मार डाला था. डोगरों ने रणजीत सिंह के एक भी वरिष्ठ सिख साथी को जीवित नहीं रहने दिया।

 

जब रणजीत सिंह को अपार शक्ति प्राप्त हो गई, तो उन्होंने अपनी सरकार में गैर-सिखों को अधिक शक्ति देना शुरू कर दिया।

 

 ब्राह्मण, डोगरे और पहाड़िये स्वेयम राजा को सुंदर पहाड़ी लड़कियाँ, और शराब और अन्य नशीले पदार्थ उपलब्ध कराकर रणजीत सिंह के मंत्रिमंडल में सत्ता हासिल करते रहे। 

 

इनमें से सबसे खतरनाक थे जम्मू के राजा रणजीत देव के पुत्र राजा जीत सिंह के चचेरे भाई किशोरा सिंह (जिनसे रणजीत सिंह ने 1815 में जम्मू छीन लिया था ) और उनके तीन बेटे: गुलाब सिंह, ध्यान सिंह और सुचेत सिंह।  थे

 

1820मे नागपुर का राजा अप्पा साहिब अंग्रेजो से हारकर रणजीत सिंघ के पास पहुँचा उसके पास बहुत सी दौलत भी थी |

परन्तु रणजीत सिंघ ने उसकी मदद करने से इंकार कर दीया और उसे यह भी कहा की तुम मेरा इलाका छोड़ कर कही और चलेजाओ उसके बाद अप्पा साहिब कांगड़ा  चला गया |

 

इस तरहा रणजीत सिंघ ने अंग्रेजो से दोस्ती बनाई रखी परन्तु दूसरी और अंग्रेज रणजीत सिंह के राज्य पर कब्जा करने की योजना बना रहे थे और दिखावे के तोर पर झूठी मित्रता भी निभा रहे थे |

 

रणजीत सिंह द्वारा यूरोपीय ‘सेनापतियों’ की भर्ती

रणजीत सिंघ ने सभी युद्ध !  सिक्ख सेनाओ की वजहा से जीते थे | रणजीत सिंघ अपनी हकुमत को खालसा दरवार कैहकर सिक्खों को खालसा राज के नाम पर इस्तेमाल करता रहा | रणजीत सिंह की  सेना की संख्या, जो शुरुआत में 5 हजार थी, उनकी मृत्यु के समय तक लगभग एक लाख तक पहुँच गयी थी।

 

 उसके पास 300 बन्दूकें, 20 हजार बन्दूकें तथा लगभग पचास हजार घुड़सवार थे। 1822 में, जब फ्रांसीसी जनरल एलार्ड और वेंचुरा उनकी सेना में शामिल हुए,

 

तब तक सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर सिख सेनाओं ने कब्ज़ा कर लिया था।  इस प्रकार, रणजीत सिंह के यूरोपीय, ब्राह्मण या डोगरा सेनापतियों ने उनके राज्य के विस्तार में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई।

 

  इसके बावजूद रणजीत सिंह की सेना की कई पलटनें यूरोपीय अधिकारियों के अधीन थीं। 

 

रणजीत सिंह को उनकी राष्ट्रीयता का भी पूर्ण ज्ञान नहीं था।  विदेशी जनरलों को रखते समय उनकी परीक्षा लेने का कोई उपाय नहीं था। 

 

वह उन्हें ऊँचे पद सिर्फ इसलिए देता था क्योंकि वे विदेशी थे।  (विदेशी जनरल थे अलेक्जेंडर

गार्डिनर और हेनरी लॉरेंस की पुस्तकें)।  उसकी सेना में 20 ब्रिटिश, 4 अमेरिकी, 5 इटालियन, 24 फ्रांसीसी, 3 स्कॉटिश, 1 आयरिश, 4 रूसी, 2 जर्मन, 1 ऑस्ट्रियाई, 1 हंगेरियन, 1 पुर्तगाली, 4 यूनानी थे!  फ़ारसी अधिकारी थे।

 

  उनमें से कई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नियमित संपर्क में थे और उनमें से कुछ ने नौकरी छोड़ने के बाद ‘रणजीत सिंह के ख़ुफ़िया राज अंग्रेज सेना को बताये और उनसे मोटी रकम हासिल की |

 रणजीत सिंह विदेशी जनरलों को सिख सैनिकों की तुलना में भारी वेतन भी देते थे, जो कभी-कभी औसत सिख सैनिक से 500 गुना तक अधिक होते थे।

 

  यूरोपीय जनरलों की बातें सुनकर रणजीत सिंह ने सैनिकों की वर्दी भी यूरोपीय शैली में बदल दी।  सिख सैनिकों की वर्दी का युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था। , इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव पंजाब और उसकी सैन्य संस्कृति पर पड़ा।

 

1822मे किशोर सिंघ डोगरा के मरने के बाद गुलाव सिंह राजा बन गया गुलाब सिंघ रणजीत सिंघ की रियासत का एकलौता राजा था

 

जिसे अपनी फौज रखने का अधिकार था गुलाब सिंघ के कुछ समय बाद उसका भाई सुचेत सिंघ राजा बनगया था पुस्तक कनिघम पन्ना 213 |

1827  मे ध्यान सिंह का पुत्र हीरा सिंह भी राजा बन गया था  (आखिरकार यही डोगरा रणजीत सिंह के शासन के विनाश का मुख्य कारण बने)।

 

 यहाँ तक कि रणजीत सिंह भी डोगराओं के लिए बड़ी मुसीबते लेने के लिये भी  तैयार थे।  1828 में, जब कांगड़ा के नए राजा अनुरुद्ध चंद अपनी मां और बहनों के साथ फतेह सिंह अहलूवालिया के बेटे की शादी में शामिल होने आए, तो ध्यान सिंह डोगरा ने अपने बेटे हीरा सिंह (कांगड़ा के दिवंगत राजा) की शादी की व्यवस्था करने की कोशिश की। संसार चंद. नए राजा अनुरुद्ध चंद की बेटी और बहन के साथ रहें.  लेकिन कांगड़ा के राजा इस ‘अवैध’ परिवार को अपने से बहुत हीन मानते थे।

 

  ऐसा करने के बाद लड़कियों की माँ अपनी बेटियों को लेकर रणजीत सिंह के इलाके से भाग गयी और अंग्रेजो के इलाके में चली गयी.  मां ने इस बात को दिल पर ले लिया और कुछ ही दिनों में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।

 

 रणजीत सिंह ने अनुरुद्ध चंद से अपनी बहनों को वापस लाने के लिए कहा।  वह उन्हें लाने के बहाने अंग्रेजी क्षेत्र में गया लेकिन वापस नहीं लौटा।  जल्द ही सदमे से उनकी भी मौत हो गई. 

 

अब रणजीत सिंह ने संसार चंद के नाजायज़ बेटों में से एक को कांगड़ा का राजा बना दिया, लेकिन बदला लेने के लिए संसार चंद की दो बेटियों से (जबरन) शादी भी कर ली (कनिंघम, 167-68)।  

 

   1837 में जरनेल हरि सिंह नलवा ने रणजीत सिंह से कहा कि यह राज्य उन्हें सिखों के बलिदान के कारण प्राप्त हुआ है और उन्हें वसीयत बनाकर इसे सिख परिषद को सौंपने का निर्देश दिया जाना चाहिए।  कनिंघम नलवा की ‘सच्चाई’ की ओर भी इशारा करता है कि वह (नलवा) रणजीत सिंह के बेटों में से केवल एक को सिख साम्राज्य का अगला राजा बनाने के खिलाफ था (कनिंघम, पृष्ठ 173)। 

जब डोगराओं ने यह सुना, तो उन्होंने रणजीत सिंह को समझाया कि यह उनका निजी राज्य है, सिखों का नहीं, इसलिए उनका वली-अहिद (बड़ा बेटा) इसका उत्तराधिकारी होगा।

  इसके कुछ दिन बाद डोगराओं ने साजिश रचकर हरि सिंह नलवा की हत्या कर दी.  इससे पहले अकाली फूला सिंह को भी डोगराओं ने एक साजिश के तहत मार डाला था.  डोगरों ने रणजीत सिंह के एक भी वरिष्ठ सिख साथी को जीवित नहीं रहने दिया।

 हजारों सैनिकों को आदेश दिया गया।  हालाँकि, उन्हें किसी भी सिख जनरल से ऊँचा पद नहीं दिया गया।

 

दोस्तों maharaj ranjit singh history part – 4 भाग की समाप्ति हम यही पर करने वाले है अगले भाग मे हम आपको बताये गे रणजीत सिंघ की मौत कैसे हुई उसके बाद अंग्रेजो ने डोगरो से मिलकर कैसे रणजीत सिंघ का पूरा खानदान ख़तम कर दीया |

  maharaja ranjit singh biography in hindi

महाराजा रणजीत सिंह biography भाग -2

maharaja ranjit singh history part 3


Spread the love

Leave a Comment