Guru nanak dev biography in hindi | गुरु नानक जन्म शिक्षा विवाह मृत्यु

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नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का Guru nanak dev biography in hindi मे | आज हम इस आर्टिकल मे गुरु नानक के बारे मे जानेंगे | गुरु नानक जीवन परिचय , guru nanak essay in hindi | गुरु नानक जी सिक्ख पंथ के सबसे पहले गुरु है | गुरु नानक जी ने भारत सहित देशो मे यात्राए  कर लोगो को जीवन की सच्चाई और धर्म मे फैले आडंबर पाखंड से अवगत करवाया |गुरु नानक जी ने अपने जीवन काल मे बहुत सी शिक्षाए दी है जिसे आज हम guru nanak biyography in hindi मे जानेंगे | 

Guru nanak dev biography in hindi 

गुरु नानक देव जी का जन्म 1526 ईस्वी मे माता त्रिपता की कोख से हुआ | नानक जी के पिता का नाम महत्ता कालू था वह खत्री परिवार से सम्बन्ध रखते थे गुरु नानक जी का जन्म राये भोये की तलवंडी मे हुआ जिसे आज ननकाणा साहिब कहते है | यह स्थान आज के समय मे पाकिस्तान देश मे है जो 1947 से पहले भारत देश का हिस्सा  हुआ करता था | गुरु नानक जी की बड़ी बहन का नाम बेबे नानकी था | बेबे नानकी  पहले गुरसिख के रूप में जानी जाती हैं। वह अपने भाई की “आध्यात्मिक प्रतिभा” का एहसास करने वाली पहली शख्सियत थी।

 

गुरु नानक देव जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे | जब गुरु जी का जन्म हुआ तब उनके पिता जी ने उनकी जन्म पत्रि बनवायी और पंडित से पूछा की यह बच्चा कैसा होगा तब पंडित जी ने बताया की आप के घर मे किसी अवतार ने जन्म लिया है | 

नानक नाम का अर्थ :-

गुरु नानक जी के जन्म के 13 दिन बाद पंडित जी ने आप का नाम नानक रखा और आप के पिता से कहा यह नाम सभी का साँझा नाम है इस लिये आपको (नानक जी को ) हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मानेंगे  और नानक हिन्दू और मुस्लमान दोनों का उद्धार करेंगे |

गुरु नानक जी बचपन से ही दयालु स्वाभाव के थे जब नानक जी 5 वर्ष के थे तब आप अपने घर से खाने का सामान लेकर अपने मित्रो मे बाँट देते थे इसी कारण आपको एक दिन आपके पिता ने गुस्सा  भी किया |

11वर्ष की आयु मे गुरु जी को जनेऊ पहनाने की रसम की गई परन्तु आपने जनेऊ पहनने से इंकार कर दीया था आप ने पंडित से कहा मुझे ऐसा जनेऊ पहनाइये जो कभी गन्दा ना हो आपकी यह बात सुनकर पंडित हैरान रह गया |

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गुरु जी के पिता ने गुरु जी को संस्कृत पढ़ने के लिये पंडित ब्रिज लाल के पास भेजा | गुरु नानक देव जी के पिता हाकिम राय “बुलार”  के पटवारी थे|  इसीलिए पंडित जी ने गुरु नानक देव जी को अच्छी तरह पढ़ाना शुरू कर दिया|

 कुछ दिन गुरु नानक देव जी को पढ़ने के बाद पंडित जी ने आपके पिता से आपकी प्रशंसा की की गुरु नानक देव जी की याद शक्ति बहुत ज्यादा है |

 एक दिन गुरु नानक देव जी ने पंडित जी से पढ़ने के लिए मना कर दिया और पंडित जी से कहा मुझे ऐसी पढ़ाई कराइए जो अंतिम समय में जमदूतो से पीछा छुड़ाएं पंडित जी ने गुरु नानक देव जी से कहा वह पढ़ाई कौन सी है

 गुरु नानक देव जी ने पंडित जी से कहा ज्ञानी और अज्ञानी के मरने में अंतर है जैसे कि अज्ञानी पुरुष अंत में शोक और चिंता लेकर मरते हैं |

 परंतु ज्ञानी लोग भगवान को हर समय अपने साथ देखते हैं और जमदूतो से निर्भय होकर अपना शरीर त्याग देते हैं|

 गुरु नानक देव जी के ऐसे विचार सुनकर पंडित जी ने उनके आगे हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और कहा यदि अज्ञानता वश उनसे कोई अयोग्य बात कही गई हो तो उन्हें माफ कर देंगे |

 

 मुल्ला के पास फारसी पढ़ाई करना

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 गोपाल के पास पढ़ाई बंद करने के बाद जब आपको कुछ महीने बीत गए तब आपके पिताजी आप को फारसी पढ़ाने के लिए मुल्ला कुतबुद्दीन के पास ले गए |

 आपका मन वहां पर भी पढ़ाई मे नहीं लगा गुरु जी पढ़ाई छोड़कर एक पेड़ के नीचे जाकर लेट गए आपके पिता जी को लगा की आप को किसी भूत प्रेत का साया है तब उन्होंने मुल्ला जी को बुलाया और उनसे दुआ करने के लिए कहा |

 गुरु जी ने मुल्ला जी को भी ऐसा उपदेश दिया की मुल्लाजी भी आपके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गए और अपने कहे गए शब्दों की क्षमा मांगी |

 

गुरु नानक देव जी के जीवन की चमत्कारी घटनाये

एकबार गुरु जी अपने पशु चराते हुए भगवान की भगतीं मे लीन हो गये और गुरु जी के पशुओ ने एक किसान का खेत उजाड़ दीया उस किसान ने गुरु जी की शिकायत राये बुलार से की और कहा आपके पटवारी के लड़के ने मेरी सारी फसल बर्बाद करदी है मुझे मेरी फसल का हर्जाना दीया जाये तब गुरु जी ने कहा इनके खेत देखे जाये यदी इनका नुकसान हुआ है तो मे उसकी भरपाई करूंगा | 

जब राय बुलार ने अपने आदमी भेज कर उसके खेत का मुआइना करवाया तो उस किसान की फसल ज्यो की त्यो खड़ी लहलहा रही थी | जब राय बुलार को इस बात की पूरी जानकारी दी गई तब राय बुलार ने  उस किसान को बुलाया और उससे कहा  तुम्हारी फसल तो पहले जैसी ही है ; आपने यह झूठी शिकायत क्यो की है |तब वह किसान बहुत शर्मिंदा हुआ और गुरु नानक देव जी की यह महिमा देख कर हैरान रह गया | और उसने गुरु नानक देव जी से क्षमा मांगी |

 

साप ने छाया की

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एकदिन गुरु जी एक पेड़ के नीचे सो रहे थे सूरज की रौशनी उनके चेहरे पर पड़ने लगी तब एक सफ़ेद साप ने अपने फन से गुरु जी को छाया की हुई थी ,तब राय बुलार वह से गुजरे और गुरु जी की इस महिमा को देख कर वह वाहा से गुरु जी को प्रणाम करके  चुपचाप चले गए | राय बुलार को देख कर सफ़ेद साप भी अपनी बिल मे चला गया |

 

सच्चा सौदा करना और लंगर प्रथा की शुरुआत :-

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एक दिन गुरु जी के पिता ने उन्हें 20 ₹ दिये और उन्हें आपको वैपार करने के लिये भेज दीया रास्ते मे उन्हें कुछ साधु मिले गुरु जी ने उन पैसो से उन्हें लंगर खिला दीया उसी दिन से लंगर की प्रथा शुरू हुई |

 

गुरु जी का विवहा

गुरु जी का विवहा मूलचंद खत्री की बेटी सुलखनी जी से 1545 मे हुआ था |

आप की महिमा सुनने के बाद मूलचंद खत्री ने एक आदमी शगुन लेकर आपके घर भेज दिया उस शगुन को आपके पिताजी और आपकी बड़ी बहन बेबे नानकी जी ने बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया और आपकी शादी का समय निश्चित कर दिया आपकी बारात सुल्तानपुर से बटाला पहुंची | 

 

गुरु जी की संतान

गुरु जी के दो पुत्र थे जिनका जन्म बड़े पुत्र श्री चंद का जन्म सावन महीने की 5तारीख 1551 मे हुआ और छोटे पुत्र बाबा लख्मी दास जी का जन्म 19 फागुन 1553 मे हुआ |

 

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन मे चार उदासिया की (विश्व यात्रा )

 

पेहली उदासी सन 1556से 1565 दूसरी उदासी सन 1567 से 1571तीसरी उदासी सन 1571 चौथी उदासी 1574 मे की

 

 

 मलिक भागो की रोटी में से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकालना 

 

 एमनाबाद के हकीम मलिक भागों ने एक दिन ब्रह्म भोज रखा उसमें सभी ब्राह्मण खत्री और नगर वासियों को बुलाया वहां पहुंचकर सभी ने भोजन खाया परंतु गुरु नानक देव जी उसके घर नहीं गए

 जब मलिक भागों को इस बात की सूचना मिली की गुरु नानक जी उसके घर पर भोजन करने नहीं आए तब उसे बहुत गुस्सा आया

 

 उसने गुरु जी को बुलाकर पूछा की आप खाना खाने क्यों नहीं आए गुरुजी ने जवाब दिया कि तुम्हारा भोजन गरीबों के खून  से की गई कमाई से बना है

 

 और भाई लालो का बना हुआ भोजन  ईमानदारी की कमाई से बना हुआ है जिसमें से दूध निकलता है और तुम्हारे खाने में से खून निकलता है

 

 यह बात सुनने के बाद मलिक भागो ने गुरु नानक देव जी से कहा यह बात साबित करके बताओ गुरु नानक देव जी ने दाएं हाथ में भाई लालो का भोजन और बाएं हाथ में मलिक भागो का भोजन लिया और अपने दोनों हाथों को जोर से दबाया

 

 उसके बाद भाई लालो की रोटी में से दूध निकाला और मलिक भागों की रोटी में से खून निकला यह सब देखने के बाद मलिक भागो ने गुरुजी से क्षमा मांगी और अच्छे कर्म करने का वादा किया 

 

 सूरज से उलट दिशा मे पानी देने पर चर्चा

 गुरु नानक जी जब हरिद्वार पहुंचे तब उन्होंने देखा कि कुछ पंडित गंगा नदी से पानी लेकर सूरज की और गिर रहे हैं

 तब गुरुजी ने भी कुछ पानी लेकर सूरज की उल्ट दिशा मे गिराना शुरू कर दिया गुरुजी को ऐसा करता देख उन्होंने गुरु जी से कहा आप इस दिशा में पानी क्यों गिरा रहे हो तब गुरु जी ने कहा आप उस दिशा मे पानी क्यों दे रहे हो तब पंडितों ने कहा हम सूरज को पानी दे रहे हैं

 

 गुरुजी ने भी कहा हम अपने खेत को पानी दे रहे हैं पंडितों ने गुरुजी से पूछा आपके खेत कितनी दूर है गुरुजी ने कहा 300 मील दूर तब पंडितों ने गुरु जी से कहा 300 मील दूर पानी कैसे पहुंच सकता है पंडितों की यह बात सुनने के बाद गुरु जी ने पंडितों से कहा जब आपका पानी हजारों किलोमीटर दूर सूरज तक पहुंच सकता है तो मेरे खेत में क्यों नहीं पहुंच सकता गुरु नानक देव जी की यह बात सुनने के बाद सभी पंडित चुप हो गए

 

 पैरो के साथ घूम गया मकके का काबा 

गुरु-नानक-और-काबा

 मक्के में मुसलमानो का एक पूजनीय स्थान है जिसे काबा कहते हैं रात के समय में गुरुजी कावा की तरफ पैर करके सो गए |

 वहां से एक इंसान गुजर रहा था उसने गुरु जी के पैर काबा की तरफ देखकर गुरुजी से गुस्से से बोला आप काबा की तरफ पैर करके क्यों सोए हो आपको नहीं पता उधर खुदा का घर है |

 गुरुजी उस इंसान को बड़े प्रेम से बोले मुझे नहीं पता कि खुद का घर किधर है जिधर खुद का घर नहीं है मेरे पैर उस तरफ घुमा दो |

 वह इंसान गुरु नानक देव जी के पैर जिधर घूमाता था काबा भी उसी दिशा में घूम जाता था यह सारी घटना देखकर वह इंसान हैरान रह गया और उसने यह घटना मक्का पहुंचकर वहां के काजी को बताई |

 

 इस घटना के बाद बहुत से लोग इकट्ठा होकर गुरुजी के पास पहुंचे और गुरु जी के साथ सवाल जवाब किये गुरु जी के जवाब सुनने के बाद वह सभी लोग गुरुजी के चरणों में गिर पड़े और उन्होंने गुरु जी से निवेदन किया कि आप अपने दाएं पैर का जूता हमें दे दें गुरुजी ने उन्हें अपने एक पाव का जूता दे दिया और अपने अगले सफर की तरफ निकल पड़े |

 

गुरु नानक जी का किरतपुर साहिब पहुंचना

गुरु नानक जी बाबा बुढन शाह से मिलने किरतपुर साहिब पहुचे बाबा बुढ़न शाह उस समय एक पहाड़ी के ऊपर रहते थे उनकी आयु उस समय बहुत 90 वर्ष की थी बाबा के पास एक शैर और बकरिया थी शैर और बकरिया एक साथ रहते थे

बाबा बुढन शाह जी ने गुरु नानक जी से कहा इस तरहा दुनियां घूम कर भगवान की प्राप्ती नही हो सकती इसी लिये मे यहाँ एकांत वास मे रहकर भगवान की बंदगी करता हू

गुरु जी ने कहा साई जी सबसे बड़ा एकांत यह है की इंसान एक मन होकर सत्संग करे और सत्संग मे से भगवान के प्रेम वाले श्रेष्ठ उपदेश की तरहा अपना जीवन व्यतीत करे

गुरु नानक जी के उपदेश सुनकर बाबा बुढ़न शाह जी ने निवेदन कीया की आप सदा के लिये हमारे पास रुकजाये परन्तु गुरु नानक जी ने कहा शरीर के कारण संगति सदा स्थिर नही रेह सकती आप हमारा नाम सिमरन सदा अपने पास रखो आप जी के यह वचन सुनकर  बाबा बुढ़न शाह बहुत प्रसन्न हुए

 

 

गुरु नानक जी का अंतिम समय 

1579मे बाबा नानक जी करतारपुर साहिब वापिस अपने परिवार के पास आ गये गुरु जी ने अपना अंतिम समय करतारपुर साहिब मे ही बिताया |

 

गुरु जी सन 1596 मे ज्योति जोत समा गये उस समे गुरु जी की आयु 70 साल 5 महीने 7 दिन थी |

गुरु जी के ज्योति जोत समाने के बाद हिन्दू और मुसलमानो के बीच विवाद होगया हिन्दू कहने लगे की गुरु जी का संस्कार हम करेंगे और मुस्लमान कहने लगे यह हमारे गुरु है हम इन्हे दफनाएंगे|

 

परन्तु जब उन्हों ने चादर उठाकर देखी तो गुरु जी का शरीर उस चादर के नीचे नही था तब हिन्दू और मुसलमानो ने वह चादर आधी आधी बाट ली हिन्दुओ ने उस चादर का संस्कार करदिया और मुसलमानो ने उस आधी चादर को दफना दीया|

 

करतारपुर साहिब मे आज भी वह कबर और वह स्थान मौजूद है जहाँ पर गुरु जी की चादर को दफनाया गया और संस्कार कीया गया था |

 

FAQ

गुरु नानक जी का जन्म कब और कहा हुआ ?

गुरु नानक देव जी के माता पिता का क्या नाम था ?

गुरु नानक जी की 3 शिक्षाए कौन सी थी ?

 


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