maharaja ranjit singh biography in hindi महाराजा रणजीत सिंह का जीवन परिचय – कैसे बना था पंजाब देश मुग़ल काल मे कैसे हुआ पंजाब का विस्थार किस के नेतृत्व मे पंजाब की सीमाएं काबुल कंधार तक पहुंची इतना विस्तार होने के बाद फिर से पंजाब एक छोटा सा राज्य बनकर रेह गया क्या कारण रहे इसके पीछे कैसे महाराजा रणजीत सिंघ का सारा वंश कैसे ख़तम हो गया आज महाराजा रणजीत सिंह का वंश आगे चलाने वाला कोई भी नही है कैसे यह सब हुआ उसकी पुरी जानकारी हम आपको इस आर्टिकल मे देने जा रहे है | इसकी शुरुआत हम महाराजा रणजीत सिंह जी के जीवन परिचय से करेंगे |
maharaja ranjit singh biography in hindi
महाराजा रणजीत सिंह का जनम 1780 मे गुजरांवाला पाकिस्तान मैं माता राज कौर की कोख से हुआ उनके पिता का नाम माहा सिंघ था|
माहा सिंघ जी शुक्रचकिया मिसल के जरनेल थे वह संधा वालिया जाट घराने से सम्बन्ध रखते थे| सिक्ख पंथ मे कुल 11 मिसले थी , उनके नाम इस प्रकार है –
11 सिक्ख मिसलो के नाम
- 1-भंगी मिसल
- 2-अहलुवालिया मिसल
- 3-रामगढ़िया मिसल
- 4-नककई मिसल
- 5-डल्लेवालिया मिसल
- 6-निशांवालिया मिसल
- 7-सिंघपुरिया मिसल
- 8-शुक्रचकिया मिसल
- 9-कन्हैया मिसल
- 10-शहीदा मिसल
- 11-करोड़सिंगिया मिसल
23 अक्टूबर 1772 के दिन अहमद शाह दुर्रानी की मौत हो गई उसके उपरांत उसका पुत्र तैमूर शाह काबुल का हुकूमरान बन गया परन्तु वह 18 मई 1794 तक जीवित रहा परंतु वह पंजाब में कभी भी अपना शासन कायम नहीं कर पाया
उसके उपरांत उसका पुत्र शाह जमान गद्दी के ऊपर विराजमान हुआ शाहजमान ने भी अपने दादा की तरह चार बार पंजाब की तरफ कूच कीया|
15 दिसंबर 1794, 3 नवंबर 1795,12 अक्टूबर 1796 और सितंबर 1798 इन चार हमलों के दौरान उनकी टक्कर सिक्ख फौज के साथ हुई|
इस लड़ाई में अफगान फौज बहुत बुरी तरहा से हार गई 4 जनवरी 1799 में शाह जमान गुरु का चक अमृतसर को छोड़कर आखरी बार अपने मुल्क वापस चला गया
रणजीत सिंह द्वारा लाहौर पर कब्ज़ा
1799 में लाहौर पर भंगी मिसल का कब्ज़ा था ,(भंगी मिसल सिक्ख सेना थी ) एसी ही पंजाब को सुरक्षा के नजरिए से कुल 11 सिक्ख मिसले बनाई गई थी | चेत सिंह भंगी – शहर का नज़ाम चला रहा था , उनका जन्म सत्ता के माहौल में हुआ था.
सिख धर्म की शिक्षा उनके निकट भी नहीं पहुंची। शासक बनने के बाद से वह मुगलों की राह पर चल पड़ा।
वह शराबी, पियक्कड़ और बदमाश भी बन गया था। जून 1799 में उसने एक ऐसा कदम उठाया जिससे शहर के सभी अमीर-वज़ीर उसके ख़िलाफ़ हो गये।
इतनी-सी बात पर उसे गुस्सा आ गया और उसने मियां बद-उद-दीन, जो शहर का शरीफ आदमी था, उसे जेल में डाल दिया।
शहर के कई सरकारी नेताओं ने उनसे मिया को रिहा करने की अपील की. लेकिन उसने उनकी तनिक भी परवाह नहीं थी.
अंत में, हकीम हकम, मियां आशिक मुहम्मद, मियां मोहकम दीन, मुहम्मद बाकिर, मुफ्ती मुकर्रम, शिर बद्री, भाई गुरबख्श सिंह और कुछ अन्य सहित कुछ वरिष्ठ नागरिकों ने एक साथ बैठकर फैसला किया कि चेत सिंह भंगी की जगह लाहौर में किसी और को नियुक्त किया जाना चाहिए।
उसे शहर की व्यवस्था चलाने के लिए कहा जाना चाहिए।’ विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने एक पत्र लिखा और उसे शुक्रचकिया मिसल के 19 वर्षीय प्रमुख रणजीत सिंह गुजरांवाला को भेजा और उनसे लाहौर पर कब्ज़ा करने और उसका कार्यभार संभालने का अनुरोध किया।
उन्होंने रणजीत सिंह को आश्वासन दिया कि सभी सरदार, अमीर-वज़ीर और अन्य नेता उनका समर्थन करेंगे। रणजीत सिंह ने इस पत्र के बारे में अपनी सास सदा कौर (मुखी नक्कई मिसल) से बात की उसने अपने जवाई का साथ देने का वायदा कीया और वह फौज की अगुवाई करके इस मुहिम मे शामिल भी हुई|
5 जुलाई 1799 को रणजीत सिंह और सदा कौर लगभग 5 हजार सैनिकों के साथ लाहौर की सीमा से कुछ दूरी पर पहुँच गये।
अगले ही दिन उन्होंने लाहौर की प्रमुख हस्तियों को निमंत्रण भेजा। रणजीत सिंह से मिलने आए | प्रतिनिधिमंडल में मुस्लिम, सिख और हिंदू सभी शामिल थे। इस बैठक में योजना बनाई गई कि अगली सुबह रणजीत सिंह अपनी सेना के साथ लाहौर शहर के दरवाजे पर पहुंच जाएंगे और लोग दरवाजे खोलकर उन्हें किले तक पहुंचने में मदद करेंगे।
योजना के अनुसार रणजीत सिंह ने 7 जुलाई 1799 की सुबह शहर में प्रवेश किया और उस पर कब्ज़ा कर लिया।
चेत सिंह की वफादार सेना ने किले पर कब्ज़ा करने के लिए कुछ समय तक लड़ाई लड़ी, लेकिन संख्या में कम होने के कारण वह रणजीत सिंह से हार गए।
आख़िरकार चेत सिंह ने हथियार डाल दिये और सुके बाद उन्हें बेइज्जत करके लाहौर से जागीर देकर भेज दिया गया|
परन्तु जब बाबा बंदा सिंघ ने सरहन्द को आजाद करवाया था तब जागीरदारी प्रथा को ख़तम कर दीया था!परन्तु माहा राजा रणजीत सिंघ ने इस सिस्टम को फिर से शुरू कर दीया था|
एक बार तो चेत सिंह वहा से चले गये लेकिन उनके साथियों ने इस हार को स्वीकार नहीं किया।
गुलाब सिंह भंगी, साहिब सिंह भंगी (गुजरात) और जोध सिंह रामगढ़िया ने कसूर के अफगान प्रमुख की मदद से लाहौर को रणजीत सिंह से वापस छीनने की योजना बनाई।
फरवरी 1801 के उत्तरार्ध में उन्होंने लाहौर की ओर प्रस्थान किया। ये चारों सेनाएं भसीन गांव पहुंचीं. रणजीत सिंह और सदा कौर की सेना के साथ-साथ लाहौर की जनता भी आक्रमणकारियों का सामना करने के लिए तैयार थी
। दोनों पक्ष कुछ दिनों तक चुप रहे लेकिन फिर छोटी-मोटी झड़पें शुरू हो गईं, लेकिन कोई बड़ा युद्ध शुरू नहीं हो सका। फरवरी के अंतिम सप्ताह में भंगी नेताओं को एहसास हुआ कि बिना बड़े युद्ध के वे सफल नहीं हो सकतेआ \
इसी दुविधा में दो-तीन दिन और बीत गये। निराशा के इस माहौल में 28 फरवरी 1801 को कटानी गांव में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पूरी सेना तितर-बितर हो गई और बाकी सेना भी अनिच्छा से वहां से चली गई। इसलिए यदि दोनों पक्षों के बीच कोई बड़ी लड़ाई होती तो इन चौधरियों के कारण दोनों पक्षों के सिख सैनिक मारे जाते।
माना जा रहा था कि लाहौर की जनता की अपील पर रणजीत सिंह ने भंगी निज़ाम को ख़त्म कर दिया और दल खालसा या स्थानीय लोगों की सलाह से किसी योग्य जरनेल को वहां का निज़ाम सौंप दिया, लेकिन सिखों की सोच भी ऐसी नहीं थी जीत सिंह के करीबी. बेशक, ब्राह्मणों और डोगरों ने रणजीत सिंह के राज्य को हड़पने में बहुत बड़ारोल अदा किया, लेकिन इस गैर-सिख राज्य का निर्माण रणजीत सिंह की गैर-सिख सोच और द्वेष का ही परिणाम था, जो कभी भी उचित नहीं था।
गुजरांवाला और लाहौर के अलावा अन्य सिख मिसलों के क्षेत्रों पर कब्जो ने इस सफलता ने रणजीत सिंह का हौसला और बढ़ा दिया। अब वह और मिसलो के इलाकों पर भी ललचाई नजरों से देखने लगा. इतना बड़ा क्षेत्र जीतने के बाद 21 वर्षीय रणजीत सिंह नशे में धुत्त हो गये।
रणजीत सिंह बने महाराजा
11 अप्रैल 1801 मे शाही दरवार लगाया और साहिब सिंघ बेदी से महाराज बनने का तिलक लगवाया और सभी हिन्दू रस्मे की गई| इसके बाद से महाराजा रणजीत सिंह के सिक्ख धर्म से भटकने की यह शुरुवात थी|
तो दोस्तो अब हम आगे जानेंगे की महाराजा रणजीत सिंह किस तरह अपने पथ से विचलित हुए और कैसे यह सब उनके अंत का कारण बना | साथ मे यह भी जानेंगे की उन्होने किस तरह बहादुरी से अनेकों युद्ध जीत कर पंजाब की धरती के बड़े हिस्से को मुग़लो से आज़ाद करवाया और इसका विस्तार भी किया |
महाराजा रणजीत सिंह biography भाग -2
maharaja ranjit singh history part 3