नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका maharaja ranjit singh part 5 मे | इसके पिछले भाग maharaj ranjit singh history part – 4 मे हमने जाना था ,की किस तरह से सिक्ख फौज ने अटक पर कब्जा किया उसके बाद कैसे महाराजा रणजीत सिंह को कोहेनूर हीरा मिला |उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह का राज्य इतना विशाल हो चुका था की यूरोपियन भी महाराजा रणजीत सिंह की फौज मे भर्ती होने के किए आए | इस बात से आप अंदाज़ा लगा सकते है की उस सामय महाराजा रणजीत सिंह का राज्य पूरे विश्व मे सबसे श्रेस्ठ था | इसी कारण योरोपियन , महाराजा रणजीत सिंह के पास नौकरी करने के लिए आए | आज इस भाग आज हम आपको बताएँगे की महाराजा की मौत कैसे हुई full history |
maharaja ranjit singh part 5 | रणजीत सिंह की मृत्यु
(महाराजा) रणजीत सिंह की शराब पीने की आदत बहुत खराब थी। शराब ने महाराजा रणजीत सिंघ का जिस्म गला दीया था पचपन वर्ष की आयु के बाद वे शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गये थे। लेकिन वह अभी भी शराब का गुलाम थे और वह बहुत तेज से तेज शराब पीते थे 1838 में जब अंग्रेज जनरल मैकनॉटन लाहौर आये तब भी उन्होंने उनके साथ बैठकर अपनी और अंग्रेजों की शराब पी। इसके बाद उन पर पैरालिसिस का हमला हो गया. यह भी व्यापक रूप से माना जाता था कि अंग्रेजों ने रणजीत सिंह को मीठी जहर वाली शराब दी थी, जिसने उन्हें जल्द ही बिस्तर पर डाल दिया। अंततः 27 जून 1839 को उनकी मृत्यु हो गई। उनके दाह संस्कार के दौरान उनकी चार हिंदू रानियाँ और सात गोलियाँ जला दी गईं।
पंजाब पर अंग्रेजो का कब्जा
(ब्राह्मणों और डोगराओं द्वारा रणजीत सिंह की सल्तनत को अंग्रेजों को सौंपने की साजिश | जैसा की आप जन चुके है की किस तरह से महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हुई | महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद दोगरों और अंग्रेज़ो ने मिलकर पंजाब पर कब्जा करने साजिश शुरू कर दी |
खड़क सिंह को गद्दी से उतारना
रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनका सबसे बड़ा पुत्र खड़क सिंह “महाराजा” बना।
रणजीत सिंह ने अपनी अधिकांश शक्ति ध्यान सिंह डोगरा और उनके पुत्र हीरा सिंह और ध्यान सिंह के भाइयों (गुलाब सिंह और सुचेत सिंह) आदि को सौंप दी। ध्यान सिंह प्रधानमंत्री थे. खड़क सिंह डोगराओं के षडयंत्रकारी कार्यों से दुखी था।
उनके सबसे बड़े गुरु चेत सिंह बाजवा थे. डोगरों का मानना था कि चेत सिंह को रास्ते से हटाकर ही वे सारी शक्ति अपने हाथ में रख सकते हैं।
ऐसा करके उन्होंने चेत सिंह के विरुद्ध षडयंत्र रचा। उन्होंने चेत सिंह द्वारा अंग्रेजों को लिखे गए जाली पत्र तैयार किए और उन्हें “देशद्रोही” घोषित करने के लिए इन पत्रों को एक स्व-निर्मित “परिषद” को सौंप दिया।
इस 11 सदस्यीय परिषद में तीन डोगरा (ध्यान सिंह, केसरी सिंह और हीरा सिंह), चार संधावाली (अंतर सिंह, किहर सिंह, लहना सिंह, शेर सिंह), मिश्र लाल सिंह ब्राह्मण, अलेक्जेंडर गार्डनर, रानी चंद कौर (महारानी) और कंवर नौनिहाल सिंह शामिल थे।
इस परिषद की षडयंत्रकारी बैठक में डोगरों ने एक प्रस्ताव पारित किया कि चेत सिंह को (जाली) पत्र लिखने के लिए दंडित किया जाना चाहिए और खड़क सिंह को हटाकर कंवर नौनिहाल सिंह को सत्ता सौंप दी जानी चाहिये
* संधावालिये रणजीत सिंह के दादा के भाई के पोते थे। हालाँकि रणजीत सिंह की जीतों में उनकी कोई खास भूमिका नहीं थी,
लेकिन शुक्रचकिया मिसल का हितैषी होने का दावा करके उन्होंने दरबार में अपनी जगह बना ली। उनके मन में निश्चित रूप से भागीदार बनने की इच्छा थी और डोगराओं की तरह, वे भी रणजीत सिंह के सभी पुरुष उत्तराधिकारियों को खत्म करके सरकार पर कब्ज़ा करना चाहते थे।
चेत सिंह की ह्त्या
9 अक्टूबर 1839 को ध्यान सिंह डोगरा के नेतृत्व में इस “परिषद” के कुछ सदस्य खड़क सिंह के कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने चेत सिंह बाजवा को ढूंढ लिया और खड़क सिंह के सामने ही उसकी हत्या कर दी। खड़क सिंघ रोता चिलाता रहा और उन्हें रोकता रहा लेकिन ध्यान सिंह ने अपने हाथों से चेत सिंह की हत्या कर दी
(कनिंघम, पृष्ठ 203)। (इससे पता चलता है कि खड़क सिंह इतना कमजोर दिल और बेजान राजा था जो अपने सलाहकार को भी नहीं बचा सका और उसके मारे जाने पर केवल रोता रहा)।
उन्होंने खड़क सिंह को भी उनके आवास में नजरबंद कर दिया और नौनिहाल सिंह को गद्दी पर बैठा दिया।
खड़क सिंह इतने दुखी थे कि उन्होंने कई दिनों तक खाना भी नहीं खाया। हिरासत के दौरान डोगरों ने उन्हें जहरीला खाना देना शुरू कर दिया.
अब कंवर नौनिहाल सिंह को भी डोगरों की चालें समझ में आने लगीं। इस लिये नोनिहाल सिंघ ने डोगरो के छडयनत्र को समापत करने के लिये यह कदम उठाया ध्यान सिंह के साथ-साथ फकीर अजीज-उद-दीन, दो ब्राह्मण जमादार खुशाल सिंह और भैया राम सिंह) के अलावा लहना सिंह मजीठिया और अजीत सिंह संधवालिया को भी निज़ाम में भागीदार बनाया।
इस प्रकार डोगरे पूरी सरकार पर कब्ज़ा नहीं कर सके। ध्यान सिंह को यह स्वीकार्य नहीं था।
ऐसा करके उसने नौनिहाल सिंह को भी खत्म करने का फैसला कर लिया। 4-5 नवंबर की रात को जहरीला खाना खाने से खड़क सिंह की मौत हो गई.
महाराजा रणजीत सिंह अंतिम संस्कार
5 नवंबर 1840 को गुरुद्वारा डेहरा साहिब और शाही मस्जिद (समाध रणजीत सिंह के पास) के बीच उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस अवसर पर खड़क सिंह की दो हिंदू राजपूत रानियों और दासियों को जबरदस्ती शहीद कर दीया गया |
नौनिहाल सिंह की हत्या
जब सभी लोग खड़क सिंह का दाह संस्कार करके वापस किले की ओर जा रहे थे तो पूर्व नियोजित षड़यंत्र के तहत ध्यान सिंह ने प्रकाश द्वार का पर्दा हटाकर नौनिहाल सिंह को मारने का प्रयास किया।
इस समय नौनिहाल सिंह ने गुलाब सिंह डोगरे के पुत्र मियां उधम सिंह का हाथ पकड़ रखा था।
गुलाब सिंह डोगरे के बेटे मियां उधम सिंह के सिर पर गेट गिरने से तुरंत मौत हो गई, लेकिन नौनिहाल सिंह को मामूली चोटें आईं।
लेकिन, पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार, नौनिहाल सिंह को तुरंत एक पालकी में बिठाया गया (साजिश के अनुसार, पालकी पहले से ही वहां थी) और ध्यान सिंह डोगरा पालकी लेकर बहुत तेजी से किले की ओर चले गए।
जब लहना सिंह मजीठिया ने उनके साथ जाने की कोशिश की तो उन्हें रोक दिया गया. इसके अलावा नौनिहाल सिंह की मां रानी चंद कौर को भी उनके पास जाने की इजाजत नहीं दी गई
चंद कौर किले का दरवाजा खुलवाने के लिए कितनी देर तक पीटती रही (डोगराओं के हाथ इतने मजबूत हो चुके थे कि महाराजा की माँ को भी किले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी)
। ध्यान सिंह ने नौनिहाल सिंह के सिर पर पत्थर मारकर हत्या कर दी। (डॉ. होनिमबर्ग, पैंतीस साल पूर्व में)। (हेनरी गार्डनर का कहना है कि नोनिहाल की मौत को एक हादसा बनाने के लिइये यह कहा गया की उस कीमौत छज्जा गिरने से हुई है
डोगरो ने छज्जा खुद गिरवाया था और छज्जा गिरने से पहले चालाकी सेह डोगरो ने पहले ही अपने सैनिकों को नोनिहाल सिंघ को लाने के लिए भेज दिया था। उनका कहना है नोनिहाल की मौत का कही रहस्य ना खुल जाये इस लिये जो पालकी वाले नोनिहाल सिंघ को लेकर आये थे
उन मे से दो पालकी वाहको को मार दीया गया और दो नौनिहाल सिंह के कतल कर राज खुल जाने की वजहा से डरकेमारे अंग्रेजी क्षेत्र में भाग गए। (अलेक्जेंडर गार्डनर, संस्मरण)
तीसरे दिन नोनिहाल सिंघ की मौत की खबर सामने आई। उसी समय, ध्यान सिंह ने शेर सिंह को मुकेरियां से आमंत्रित किया ताकि उसे सिंहासन पर बिठाया जा सके।
आठ नवंबर को नौनिहाल सिंह का अंतिम संस्कार किया गया। उनके साथ-साथ उनकी दोनों रानियों (हिन्दू राजपूत कटोचन और पकोरन) को भी 4 दासियों सहित सती कर दीया गया (जबरन ज़िंदा जला दिया गया)।
(सिर्फ साढ़े 16 महीने में रणजीत सिंह के दो उत्तराधिकारी राजाओं का सफाया हो गया)।
चंद कौर का रानी बनना
हालाँकि शेर सिंह मुकेरियाँ से लाहौर पहुँच गए थे, लेकिन ध्यान सिंह डोगरा उन्हें महाराजा बनाने में सफल नहीं हो सके
संधावालिया के ईलावा अन्य सरदारों ने उनका विरोध किया। अंततः डोगरों को चंद कौर (खड़क सिंह की पत्नी और नौनिहाल सिंह की मां) को अपनी रानी के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हालाँकि अस्थायी तौर पर उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया, लेकिन वे अपने अंदर ही अंदर जेहर उगलते रहे और उसे रास्ते से हटाने की रणनीतियाँ बनाते रहे
। इस अवसर पर उन्होंने एक चाल चली कि गुलाब सिंह डोगरा रानी का राज़ हासिल करने के लिए रानी चंद कौर के साथ मिल गया और ध्यान सिंह राजा शेर सिंह के साथ चला गया।
दूसरी ओर, संधावली (अतर सिंह, अजीत सिंह, लेहना सिंह) सभी रानी चंद कौर का समर्थन कर रहे थे।
नवंबर 1840 से दिसंबर 1840 तक रानी चंद कौर ने महारानी के रूप में शासन किया। वहां डोगरे शेर सिंह को सारा समाचार देते थे।
अब डोगरों ने रानी चंद कौर के अंग्रेजों के साथ मिले होने का झूठा प्रचार करना शुरू कर दिया। डोगरो ने चेत सिंघ बाजवा की तरहा महारानी चंद कौर के नाम की नकली चिठ्ठीया बनाकर तैयार करली
. डोगरो के इस ख़तरनाक प्रचार का प्रभाव भोले और भावुक सिख सैनिकों पर तुरंत पड़ा। इस प्रचार के कारण सेना का एक बड़ा हिस्सा शेर सिंह का समर्थक और चंद कौर का विरोधी बन गया।जनरल वेंटूरा को भी डोगरो ने अपने साथ मिला लिया था (या उन्होंने स्वयं आत्मसात कर लिया था)।
सुचेत सिंह डोगरा भी आये और शेर सिंह से मिले। अब रानी के पास केवल संधावलियाँ ही बचे थे और कुछ वफादार सेनापति उनका समर्थन कर रहे थे।
अंततः, निर्णय युद्ध द्वारा किये जाने की संभावना बन गयी। शेर सिंह की सेना ने किले को घेर लिया और गोलाबारी शुरू कर दी |
। तीन दिन तक किले के अंदर और किले पर गोलाबारी होती रही। अब चाँद कौर को लगने लगा कि वह युद्ध नहीं जीत सकती। ऐसा करके वह शेर सिंह को शासन सौंपने पर सहमत हो गई |
शेर सिंह का राजा बनना
18 जनवरी 1841 को शेर सिंह महाराजा बने और 20 तारीख को लाहौर की गद्दी पर बैठे। वह रानी चंद कौर को सालाना 9 लाख रुपये देने पर सहमत हुए। इसके बाद चंद कौर ने अपनी सारी संपत्ति गुलाब सिंह डोगरे के साथ जम्मू भेज दी।
(रानी के कपड़े, सोना, चांदी, सिक्के, मुहरें, पशमीना आदि 16 गाड़ियों पर लादकर जम्मू ले जाया गया)। यह सब उस समय 80 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच था
यह संपत्ति न केवल रानी की निजी संपत्ति थी बल्कि इसमें दरबार का काफी खजाना भी शामिल था। क्योंकि ध्यान सिंह डोगरा ने ही शेर सिंह की सबसे अधिक मदद की थी,
ऐसा करके उन्हें प्रधानमंत्री बनना था। उसने धीरे-धीरे सारी शक्ति फिर से अपने हाथ में लेनी शुरू कर दी रानी चंद कौर के रास्ते में अभी भी काँटा था।
इस बीच चंद कौर और शेर सिंह की शादी कराने की कोशिश की गई, लेकिन रानी के भाई चंदा सिंह कन्हैयां ने इस बात को ना मंजूर कर दीया \
जून 1842 में महाराजा शेर सिंह सियालकोट गये (एक सूत्र के अनुसार वजीराबाद) (या योजना के अनुसार वे स्वयं गये)।
ध्यान सिंह डोगरा ने चंद कौर की दासियों को पहले ही अपने साथ मिला लिया था |
उन्होंने 11 जून, 1842 की रात को चंद कौर के सिर पर चक्की के पाट से वार करके और सिर कुचलकर कर उनकी हत्या कर दी।
(एक स्रोत के मुताबिक पहले उनके परांदे से चंद कौर के हाथ पीछे बांध कर सिर पर पत्थर मारकर हत्या करने की बात लिखता है)।
ध्यान सिंह ऐसे षडयंत्रों में माहिर थे। सबसे पहले उसने कुंवर नौनिहाल सिंह की पत्नी का एक बच्चा भी उसके पेट में गिरा दीया था|
ताकी नोनिहाल का कोई अन्य उत्तराधिकारी पैदा नहीं हो सके । इसके साथ ही उन्होंने लहना सिंह और केहर
सिंह संधावालिया को भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
इस सारे षड्यंत्रकारी माहौल में अंग्रेज़ दोहरी भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने डोगराओं के साथ भी गठबंधन किया था और संधानवालियों के साथ भी साजिश रच रहे थे।
जब राजा शेर सिंह गद्दी पर बैठे तो अतर सिंह और अजीत सिंह संधवालिया सतलुज पार करके अंग्रेजी क्षेत्र में चले गये।
कुछ समय बाद, अंग्रेजों ने अपने एजेंट मिस्टर क्लार्क के माध्यम से शेर सिंह से लाहौर लौटने की अनुमति प्राप्त की और उन्हें उनकी जागीरें वापस दे दीं।
इसके साथ ही लेहना सिंह और केहर सिंह संधावालिया को भी रिहा कर दिया गया। ऐसा लगता है कि इस समझौते में साहिब सिंह बेदी के बेटे बिक्रम सिंह बेदी की भी भूमिका थी | ये चारों संधावलियो ने लौटकर कुछ महीने वफादारी की और सम्मान के माहौल में बिताए,|
लेकिन फिर अंग्रेजों से सलाह ली और फिर से साजिशें शुरू कर दीं | दूसरी ओर, ध्यान सिंह भी महाराजा शेर सिंह से नाराज़ रहने लगे क्योंकि महाराजा ध्यान सिंह डोगरा को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते थे,
जबकि ध्यान सिंह पहले रणजीत सिंह और फिर नौनिहाल सिंह के अधीन पूरी शक्ति अपने हाथों में रखते थे।
इसी बीच सत्ता पर काबिज होकर संधावलियों और ध्यान सिंह में आपसी बातचीत हुई। अपनी मौत को सामने देखकर ध्यान सिंह ने संधावालियों से घनिष्ठता स्थापित कर ली थी।
शेर सिंह के शासन के प्रारम्भिक दिनों में सेना ने भी अपनी मनमर्जी करनी शुरू करदी थी | उन्होंने कईयों को मौत की सजा भी दी. उनमें एक अंग्रेज फाउल्के और मियाँ सिंह सूबेदार भी शामिल थे।
जनरल कुर्ट और जनरल अविताबल भी बड़ी मुश्किल से भागने में सफल हुए|
। सेना ने भी खूब लूटपाट की. अमृतसर के शाह, सर्राफ और बैंकर अंग्रेजी क्षेत्र की ओर भागने के लिए तैयार हो गये। इस माहौल में अंग्रेजों ने भी शेर सिंह को बहकाने की कोशिश की जनरल क्लार्क ने शैर सिंघ को मदद देने की पेशकश की परन्तु उसने मना कर दीया (कनिंघम, पन्ना 213,14
तो दोस्तो इस भाग मे हमने जाना की महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ डोगरे और ब्रांहणों ने मिलकर महाराजा रणजीत सिंह के पूरे खानदान को मरने की सजीशे रची और मारा भी | एक एक करके महाराजा रणजीत सिंह के सभी वारिशों को डोगरों ने पहले गद्दी से उतारा बाद मे उनको साजिश के तहत मरवा डाला |
अब अगले भाग मे हम जानेंगे की किस तरह से महाराजा शेर सिंह और ध्यान चंद डोगरा की हत्या की गई | और उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह के छोटे पुत्र दिलीप सिंह को महाराजा बनाया गया |
maharaja ranjit singh history part 6
1 thought on “maharaja ranjit singh part 5 | महाराजा रणजीत सिंह की मौत कैसे हुई full history”