रणजीत सिंह और सिख सिद्धांत | maharaja ranjit singh history part 2

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रणजीत सिंह और सिख सिद्धांत | तो दोस्तो आज हम कवर करेंगे maharaja ranjit singh history part 2 को | पिछले आर्टिकल मे हमने महाराजा रणजीत सिंह जी की biography को कवर किया था | जिसमे हमने उनके जन्म से लेकर उनके महाराजा बनने तक के इतिहास को जाना था | आज हम जानेंगे की महाराज बनने के बाद किस तरह उन्होने अपनी बहदुरी से कसूर पर कब्जा किया और  किस तह सिक्ख सिद्धांतो से भटकने की शुरुआत हुई |

 

रणजीत सिंह और सिख सिद्धांत 

जब 1799 में रणजीत सिंह ने लाहौर के अन्यायी भंगी शासकों को उखाड़ फेंका। और लोगो की उन से जान बचाई | 1799 में लाहौर पर कब्ज़ा करने के बाद रणजीत सिंह ने अपना ध्यान किसी अन्य क्षेत्र की ओर नहीं लगाया।  

  सरबत खालसा के सिद्धांत को तोड़ने के बवजूद वह कुछ हद तक सही जा रहे थे।  लेकिन जब उन्हें भंगियों की तरह शासन करने की ‘हवस’ हुई तो उन्होंने एक साधारण राजा की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया।  

पुस्तक व पन्ना नंबर सहित प्रमाण 

(1) रणजीत सिंह ने “महाराजा” की उपाधि धारण की और इस उद्देश्य के लिए “अभिषेक” का हिंदू अनुष्ठान किया।  (प्राशर -प्रशन पन्ना -359)

 (2) राज्याभिषेक के कुछ ही वर्षों बाद उन्होंने सिख राजनीति के सबसे मूल्यवान हिस्से ‘सरबत खालसा’ को बुलाना बंद कर दिया और खालसा की विजयों से प्राप्त क्षेत्र पर अपनी इच्छानुसार मंत्रालय की स्थापना की।  यह मूल हिंदू तरीका था.  (प्रश्न, पृ. 359-60)

 (3) अपने शासन के उत्तरार्ध में उसने मुद्रा पर हिंदू धर्म के पीपल के पत्ते को भी उकेरा और अपने शासन में सिख सिद्धांतों को लागू करके इसे ब्राह्मण पैटर्न का रंग दिया।  (प्राशर,-पन्ना 360-61)

 (4) रणजीत सिंह के दरबार के रिकॉर्ड, विशेषकर उनके अपने समय के, ब्राह्मणों और हिंदू मंदिरों को दिए गए बेहिसाब धन और दान से भरे हुए हैं।  यह एक कर्तव्य है जो ब्राह्मणों के अनुसार प्रत्येक हिंदू राजा के लिए आवश्यक है (और रणजीत सिंह ब्राह्मणों के निर्देशों के तहत ही कार्य कर रहे थे)।  (प्राशर प्रश्न, पृष्ठ 361)

 (5) जब भी किसी सिख ने इस सिख विरोधी दृष्टिकोण पर आपत्ति जताई, तो उसे व्यवस्थित रूप से लेकिन निश्चित रूप से सरकार से बाहर कर दिया गया।  जरनेल हरि सिंह नलवा, बाबासाहेब सिंह बेदी, अकाली फूला सिंह को या तो हटा दिया गया या अप्रभावी बना दिया गया।  (प्राशर प्रश्न, पृष्ठ 361)

 (6) रणजीत सिंह ने अपनी सेना के झंडे में नीले निशान साहिब के स्थान पर हिंदू देवी का प्रतीक स्थापित किया।

 (7) रणजीत सिंह शराब और महिलाओं का गुलाम बन गया था।  उसकी 30 से अधिक रानियाँ, दर्जनों रखेले  यही महाराजा रणजीत सिंघ और उसकी सल्तनत की बर्बादी के मुख कारण थे 

 (8) शराब के प्रति उनकी कमज़ोरी के पर्याप्त सबूत हैं और उनके अकाली रक्षक कभी-कभी उनसे नाराज़ हो जाते थे। उनकी इसी बात से नाराज होकर महाराजा रणजीत सिंघ ने सिक्ख पहरेदारों को हटाकर  उन्होंने डोगरों को अपने पहरे दारी का कर्तव्य सौंप दिया।  वह शराब और अन्य नशीले पदार्थों का इतना आदी था कि अंततः इनके कारण वह लकवाग्रस्त हो गया जो घातक था।

 (9) 1825 के बाद रणजीत सिंह डोगरों, विशेषकर ध्यान सिंह की चापलूसी के चक्कर में पड़ गये थे।  ध्यान सिंह दरबार में माहाराजा रणजीत सिंघ की कुर्सी के पास नीचे जमीन पर बैठकर रणजीत सिंघ पाव अपनी झोली मे रखकर दबाता रहता था रणजीत सिंघ डोगरो की इस चापलूसी का आदी हो चुका था 

 

   कसूर पर हमला 

जुलाई 1799 से फरवरी 1801 तक उन्होंने लाहौर को बहुत ही कुशल ढंग से संगठित किया। फरवरी 1801 में, उन्होंने भंगियों और मिसल रामगार्डियों के बजाय केवल कसूर के अफगान शासक को दंडित करने का फैसला किया,

रणजीत-सिंह-और-सिख-सिद्धांत

 जो अपने क्षेत्र को फिर से हासिल करने के लिए लाहौर पर हमला करने आए थे।  1801 की गर्मियों में, उन्होंने कसूर पर चढ़ाई की।  क्यों की यह आक्रमण एक मुसलमान पर था इसलिए किसी भी सिख ने रणजीत सिंह का विरोध नहीं किया।

 

 अंत में, कसूर के शासक ने जुर्माना देने के मामले को स्वीकार करने और उसे मुक्त करने के लिए सहमत हुए।  लेकिन अगले साल जब उन्होंने दोबारा मुकदमा दायर नहीं किया तो रणजीत सिंह ने दोबारा हमला किया और मुकदमा और जुर्माना दोनों वसूल लिया.  

 

मोरा कंजरी और गुल बेगम कंजरी से विवहा करवाना 

1802 मे महाराजा रणजीत सिंघ ने एक वेश्या से शादी करली जिसका नाम मोरा कंजरी था| उस के नाम पर एक पुल भी बनवाया गया था जो आज भी पाकिस्तान मे मौजूद है जिसे मोरा कंजरी पुल कहा जाता है इस के इलावा मोरा के नाम पर एक सिक्का भी जारी कीया था|

 

उसके बाद 1833मे एक और वेशया से विवहा करवाया जिसका नाम गुल बेगम था | बस इतना ही नहीं इन दोनों वेशयाओ को दूसरी रानीयों से ऊंचा ओहदा दीया हुआ था|

 

रणजीत सिंघ मोरा कंजरी का इतना दीवाना था की एकबार मोरा कंजरी को खुश करने के लिये उसे सबसे खूबसूरत कह दिया|रणजीत सिंघ की यह बात जब उसकी पहाड़ी पत्नी को पता चली तो उसने ख़ुदकुशी करली क्यूंकि वह सब से खूबसूरत थी|

 

 इन दोनों वेश्याओं ने सिख धर्म नहीं अपनाया था इन दोनों वेश्याओं के लिए नमाज पढ़ने के लिए लाहौर के किले में खास मस्जिद  बनवाई हुई थी .

 मोरा कंजरी ने तो लाहौर में अपने लिए एक विशेष मस्जिद भी बनवाई हुई थी| मोरा कंजरी के साथ शादी करने के बाद महाराजा रणजीत सिंह 13 दिनों के लिए हरिद्वार चले गए उनहो ने इन दीनो  में  रणजीत सिंह और मोरा ने तकरीबन ₹100000  रु खर्च कर दिया

 

 हरिद्वार का संबंध ना तो सिखों से ना ही मुसलमानों से था इसीलिए सिक्ख रणजीत सिंह और मुसलमान मोरा का वहां पर तीर्थ यात्रा या फिर हनीमून मनाने के लिये जाने का भी मतलब नहीं था इसलिए वहां पर खर्च किया गया ₹100000 रु दान राशि में लिखा गया था 

मुल्तान पर कब्जा 

 

 लाहौर के बाद मुल्तान पश्चिमी पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा राज्य था।  रणजीत सिंह चाहते थे कि वह इस पर भी कब्ज़ा कर लें। 

उसने 1803 में मुल्तान को जीतने के लिए इस शहर को घेर लिया।  लेकिन मुल्तान के पठान बहादुरी से लड़े।  रणजीत सिंह की सेना के पास अनाजऔर खाने पिने का सामान ख़तम हो गया

 

और उन्हें वापिस लौटना पड़ा इस के बाद रणजीत सिंघ ने मुल्तान पर पांच और हमले किये 1805,1807,1810,1816,1817 छे हमले करने के बाद भी रणजीत सिंघ मुल्तान पर कब्जा नहीं कर पाया इसके बाद रणजीत सिंघ ने अकाली फूला सिंघ से मदद मांगी 

 30 मई 1817 को अकाली फूला सिंह की सेना ने मुल्तान पर कब्ज़ा कर लिया और उसे रणजीत सिंह के हवाले कर दीया हार के बाद मुल्तान प्रांत का नवाब महाराजा को राजस्व देने पर सहमत हो गया था

 

, लेकिन एक साल बाद वह फिर पीछे हट गया। उसने झंग के विद्रोही रईस अहमद खान को भी आश्रय दिया और सिखों के खिलाफ साजिश रच रहा था। अंततः 2 जून 1818 को रणजीत सिंह की 20,000 सिख सेना ने मुल्तान पर हमला कर दिया;

 उनके पास ज़मज़म तोप भी थी।  इस लड़ाई में सिखों की जीत हुई, लेकिन अकाली फूला सिंह और हरि सिंह नलवा दोनों इस लड़ाई में घायल हो गए।इस लड़ाई में मुल्तान के नवाब मुजफ्फर खान के पांच बेटे शबाब खान, निवाज खान, इजाज खान, मुमताज खान, हक निवाज खान मारे गये |

 

  1805 में, जब अंग्रेजों द्वारा परेशान कीया गया एक मरहट्टा, जसवन्त सिंह राव होलकर, पंजाब पहुंचा, तो रणजीत सिंह ने सरबत खालसा को बुलाया और उनसे उनका समर्थन करने के बारे में उनकी राय मांगी। 

 

गुरमता के अनुसार रणजीत सिंह ने उनका साथ नहीं दिया, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों से समझौता कर लिया।  लेकिन, इसके बाद रणजीत सिंह ने सरबत खालसा की सभा को अनुमति नहीं दीहालाँकि, उसने सिख मिसलों के क्षेत्रों को छीनना शुरू कर दिया और यदि उसने सरबत खालसा को बुलाया होता, तो उसे अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता। 

शायद कोई भी सिख जनरल उस अनुकरणीय राजा के निमंत्रण पर नहीं आता 

  

    अमृतसर पर रणजीत सिंघ का कब्जा

कसूर पर हमला करने के बाद, रणजीत सिंह ने संयुक्त सिख-नगर, गुरु दा चक, अमृतसर पर कब्ज़ा करने का फैसला किया।

अमृतसर उस समय भंगी मिसल के पास था।  लाहौर उनसे पहले ही छीन लिया गया था।  1804 मे

रणजीत सिंह ने जय सिंह कन्हईया से एक तोप माँगी और अमृतसर की तरफ कूच कर दीया ।

वहाँ पहुँचकर रणजीत सिंह ने चतुराई से गुलाब सिंह भंगी के पुत्र से ‘भंगियों वाली टोप उधार माँगी

उनके इंकार करने पर रणजीत सिंह ने उन पर हमला करके, उनकी हत्या करके और उनकी माँ को बारिश में ही घर से बाहर निकाल दीयाअमृतसर पर भी कब्ज़ा कर लिया।

इस समय अकाली फूला सिंह भी अमृतसर में थे लेकिन वह रणजीत सिंह को समझाने या समझौता कराने की बजाय चुप रहे।

अमृतसर पर कब्जे ने छोटी सिक्ख मिसलो  को डरा दीया और उन्होंने रणजीत सिंह से जागीरें लेकर समझौते करने शुरू कर दिये।

तो दोस्तो इस भाग की समाप्ती हम यही पर करते है ,इसके अगले भाग मे हम जानेंगे महाराजा रणजीत सिंघ ने अंग्रेजो से कोनसा समझौता किया  और उस से पहले कौन कौन से इलाके जीत कर पंजाब मे शामिल किये | 

maharaja ranjit singh history part 3

  maharaja ranjit singh biography in hindi


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